एक डर सा छा रहा है , ना जाने किस ख्वाब का ये साया है
क्यों इतने ख्वाब देखे हमने, आज इसी बात का बस पछतावा है.शाम ढलती है रोज़ हमारी खिड़की पे, जीने में अब वो मजा नहीं
ऐ खुदा! दिखा दे एक रास्ता, अभी थोड़ी दूर और चलना है हमे.
कल कोई रोया था हमारी बातों पे, वो भी एक क़र्ज़ हो गया
दुःख तो इस बात का है, जो रोया वो बेक़सूर भी अपना था.
जिंदगी हर कदम पर अब मांग रही है हमसे एक हिसाब
कहाँ कहाँ लुटाएं हैं तुने यूँ बेहिसाब.
एक जवाब नहीं है अब हमारे पास , कैसे बताएं आपको
शर्म आती है अब, जब देखते हैं आईने में खुद को.
आता - जाता हर सक्श अब देता है कुछ सुझाव
कैसे समझाएँ उन्हें, कि खो गया है हमारा वो जिंदगी से लगाव .
दो पल चुप बैठ जाओ तो लोग पूछने लगते हैं हाल
क्यों चाहते हो जानना हमारे बारे में!?
कितने खुश थे हम यूँ अनजान.
कोई सहारा भी बना था हमारा, लूट गया सब कुछ वो ही
इस वक़्त ने भी कर दी एक तौहीन , दिखाई वो राह जो थी खुद में अंधी.
वो आसमां भी ना जाने क्यों हँस रहा है देखते हुए हमारी ओर
लगता है अब छूट गयी हमारे हाथ से उस पतंग की कोमल सी डोर .
अनजान राहों पर यूँ ही भटकते जा रहे हैं
ना जाने किसकी तलाश में .